Sunday, January 11, 2009

Khamoshi

कौन कहता है खामोशियाँ खामोश होती है?
खामोशियाँ खामोश नहीं होती है।
खामोशियाँ खामोशी में वो सब कुछ कह
देती है जिनकी तलाश ताउम्र
लव्जों को होती है।
मैं
हाँ मैं एक आम आदमी हूँ । एक सामान्य आदमी, रोजमर्रा की जिंदगी जीता एक इन्सान। किसी मिटटी में दबा हुआ एक अंकुरित दाना या यूँ कह लीजिये की काले बादलों के बीच धूमिल सा एक नन्हा तारा जिसे duniya daari की कोई समझ नही
मैं कोई साहित्यकार, रचनाकार, लेखक, आलोचक,या कवि नही, न ही मुझे हिन्दी साहित्य की कोई समझ है। मैं तो बस लिखता हूँ अपने सुकून के लिए। मैं लिखता हूँ vahi जो main देखता हूँ, सुनता हूँ, समझता हूँ, या जो कल्पनाएँ करता हूँरब मैं अपनी बात किसी से नही कह पता हूँ तब मैं बातें करता हूँ इन सबसे, क्या सही है क्या ग़लत यह मैं नही जानता । हो सकता है मुझसे जुड़ने के बाद आपको लगे की इसे तो रचना करने की कोई समझ ही नही है । तो यह सच है, लेकिन इस सच का दूसरा पहलू मेरी अपनी जिंदगी का सच है जो शब्द बनकर कागज़ पर उतरी है जिसे samajh पाना या समझा पाना सायद मुस्किल है। लेकिन सायद यह उन सबके शब्द हैं जो मेरी तरह गुमनामी की जिंदगी जीते हुए गुमनामी में ही दम तोड़ देती है उनमे से कुछ कामयाब होते हैं तो कुछ सिर्फ़ कोसिस ही कर पाते है । सायद मेरी भी कुछ ऐसी ही छोटी सी कोशिश है की मई आपसे जुड़ कर आपके लिए आपनी एक पहचान छोड़ जाऊँ ।