Friday, December 18, 2009

ये शहर है कुछ ऐसा



ये शहर है, यहाँ सबकुछ है

पर कुछ भी ऐसा नहीं अपना कहने को,

हाँ ये शहर है कुछ ऐसा,

यहाँ जिंदगियां बहोत है

पर जीने को कुछ भी नहीं

हाँ ये शहर है कुछ ऐसा,

हर एक के पास सब कुछ है,

पर देने को कुछ भी नहीं,

हाँ ये शहर है कुछ ऐसा,

पिने को बहोत कुछ है,

पर दो घूंट पानी नहीं,

हाँ ये शहर है कुछ ऐसा,

खाने को बहोत कुछ है,

पर घर कि रोटी साग नहीं,

हाँ ये शहर है कुछ ऐसा,

यहाँ है बड़ी बड़ी इमारते,

पर ले सके कोई सुकून कि साँस

ऐसी कोई ठंडी दरख्त नहीं,

हाँ ये शहर है कुछ ऐसा,

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