Friday, December 18, 2009

रिश्तों का चलन




जमीं पर पड़ा,


छिछला घड़ा,


घड़े से रिसता पानी,


पानी से नम होती जमीं,


जमीं में दबा दाने का अंश,


नमी से अंकुरित होता दाना,


दाने से निकलता नन्हा पौधा,


पौधे से बनता विशाल वृक्ष,


और पास में पड़ा वाही रिसता घड़ा,


वृक्ष से निकलते फुल,


फूलों से निकलता फल,


फलों से बोझिल डालियाँ,


डालियों से छूटकर कोई फल,


आकर घड़े पर पड़ा,


और टूट गया घड़ा,


अब न वह अंकुरित दाना,


और अब न वह रिसता घड़ा,


शायद यही ही रिश्तों का चलन,


सोचता ही यही वह "खामोश" टूटता घड़ा,

1 comment:

  1. ghade ki kahani mein chhupi rishto ki sachchaaee

    apni baat kehne ka yeh andaaz bahut hi khoob raha

    -Sheena

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