Saturday, June 13, 2009

मैं एक कतरा कागज का

मैं एक कतरा कागज का

मैं एक कतरा कागज का
कभी सवाल होता हूँ किसी का
कभी जवाब बन जाता हूँ
कभी ख़त रहता हूँ तो
कभी खिताब बन जाता हूँ

हाँ मैं एक कतरा कागज का
जिस पर रोटी है कलम
गम में सर रख कर
कभी खिलते है खुसी के रंग
इस पर कलम बैंकर
लेकिन मैं केवल एक कतरा कागज का

लेकिन मैं केवल एक कतरा कागज का
कभी बारिश के बूंदों के बिच
कागज की कस्ती बन इठलाता हूँ
कभी सख्त मिटटी में मैं

तृष्णा बैंकर दफ़न हो जाता हूँ

मैं हर बार एक कतरा कागज का
मैं buजाता हूँ अपनों में कई बार
बदलता हूँ रूप गैरों के लिए कई बार
सोचता हूँ अपने अस्तित्व को
फ़िर मौन हो जाता हूँ हर बार

मैं सिर्फ़ एक कतरा कागज का
जो पहुचता है रद्दी की टोकरी में
हर बार इस्तेमाल करने के बाद
देखता हूँ अपने ही जैसे कयिओं को
कारखाने की भीड़ में पहुचने के बाद
और जन्म लेता हूँ फ़िर एक बार
अपने अस्तित्वा को पहचानने के लिए
और अब भी हूँ मैं वही
एक ‘खामोश’ कतरा कागज का

Friday, June 12, 2009

है एक लड़की कत्थई आँखों वाली



है एक लड़की कत्थई आँखों वाली
चहरे पर दिखती है उसके खुशियों की लाली


उसका गुस्सा उसका रूठना भाता है मुझको
उसे सता कर फ़िर मानना आता है मुझको
उसकी हसी है गम हरने वालई


है एक लड़की कत्थई आँखों वाली
कहते कहते सुब कुछ कह डाले
सुनते रह जाते है सुनाने वाले
उसके आने से आ जाती हरियाली

है एक लड़की कत्थई आँखों वाली
शीशे जैसा है उसका मन
गंगा जैसी है वो पावन

बनकर खुसबू फूलों वो रहने वाली

है एक लड़की कत्थई आँखों वाली
पल भर में कुछ ऐसा कर जाए
समझने वाले उसको समझ न पाए
जैसे उसकी हरकत हो बच्चो वाली

है एक लड़की कत्थई आँखों वाली
उससे मेरा रिश्ता है जाने कैसा
जो लगता है कच्चे धागे जैसा
यह बात न वो समझने वाली

है एक लड़की कत्थई आँखों वाली
जबसे मैंने उसको है जाना
उसको अपने जैसा ही है मन

मैं कहता हूँ उसको गुडिया कपड़ो वाली

है एक लड़की कत्थई आँखों वाली
गर कभी उसपार गम आजाये
हसकर हम सबसे वो छुपा जाए
पर आँखे है उसकी सुबकुछ कहने वाली

है एक लड़की कत्थई आँखों वाली
कुछ लिख कर मैं रुक जाऊँ

कुछ हकर खामोश हो जाऊँ
लगती है वो मुझको तितली भोली भली

है एक लड़की कत्थई आँखों वाली
हाँ वही तो है तू माशुम सी
एक ‘खामोश’ लड़की कत्थई आँखों वाली