मैं एक कतरा कागज का
मैं एक कतरा कागज का
कभी सवाल होता हूँ किसी का
कभी जवाब बन जाता हूँ
कभी ख़त रहता हूँ तो
कभी खिताब बन जाता हूँ
हाँ मैं एक कतरा कागज का
जिस पर रोटी है कलम
गम में सर रख कर
कभी खिलते है खुसी के रंग
इस पर कलम बैंकर
लेकिन मैं केवल एक कतरा कागज का
लेकिन मैं केवल एक कतरा कागज का
कभी बारिश के बूंदों के बिच
कागज की कस्ती बन इठलाता हूँ
कभी सख्त मिटटी में मैं
तृष्णा बैंकर दफ़न हो जाता हूँ
मैं हर बार एक कतरा कागज का
मैं buजाता हूँ अपनों में कई बार
बदलता हूँ रूप गैरों के लिए कई बार
सोचता हूँ अपने अस्तित्व को
फ़िर मौन हो जाता हूँ हर बार
मैं सिर्फ़ एक कतरा कागज का
जो पहुचता है रद्दी की टोकरी में
हर बार इस्तेमाल करने के बाद
देखता हूँ अपने ही जैसे कयिओं को
कारखाने की भीड़ में पहुचने के बाद
और जन्म लेता हूँ फ़िर एक बार
अपने अस्तित्वा को पहचानने के लिए
और अब भी हूँ मैं वही
एक ‘खामोश’ कतरा कागज का