कल....................
जिस चौराहे से कभी वो
पलकों को निचे किये, गर्दन को झुकाए,
दुपट्टे को संभाले, किताबों को सिने से दबाये,
धड़कते दिल को थामे, चहरे पर उड़ते बालों को
कानो में दबाते हुए, दुनिया की नजरो से बचाते हुए,
खुद में सिमटे हुए, अपने अस्तित्व को बचाते हुए,
भयभीत हिरनी की तरह, कापते कदमो से,
कालेज की तरफ चली जा रही थी।
आज.....................
उसी चौराहे से वो,
बिखरे खुले पड़े बालों में
उलझे हुए पीले पड़े चहरे पर पड़े
पसीने की बूंदों की बीच नाख़ून से बने
दर्द के निशान लिए हुए,
आँखों में आशुओं के शैलाब को संभाले,
अस्त - व्यस्त फटे कपड़ो में पड़ी
जिन्दा लाश के साथ जमीं तक घसीटते
दुपट्टे को न उठाने की गरज से,
कंधे से सरकते हुए अरमानो और
तूफान के बाद की ख़ामोशी को लिए हुए,
शुन्य में एक तक देखती हुयी,
दुनिया से बेखबर, बोझिल पैरों से,
बुझी हुयी आत्मा के साथ एक लक्ष्यहीन रस्ते पर
चली जा रही थी उसे अस्तित्व के खत्म हो जाने के बाद
और अब.................
शायद उसको कुछ खो जाने का डर न है
वह कल भी खामोश थी ,वह आज भी "खामोश " है
और किससे कहती वो ये सब,
किसको सुनती वो अपने दुःख दर्द
और किसको दिखाती वो अपने ये ज़ख्म
शायद - शायद कोई अपना ही था जो ...........................
Kal aaj aur ab ...
ReplyDeletemain ab bhi wahin hoon jahan tha..
-Sheena